मल द्वार पर मस्से होना, मल द्वार पर सूजन आना, मल के साथ खून आना
मल के साथ पस / मवाद / रक्त का आना, मल त्याग के समय दर्द एवं जलन का होना , मल द्वार पर सूजन आना
मॉल द्वार पर कट लग जाना एवं एवं जलन / खुजली का होना
पेट का साफ़ नहीं होना, खट्टी डकार आना, बार बार सौंच जाने की इच्छा
बड़ी आंत में सूजन, मल के साथ चिपचिपा निकलना
आपके द्वारा दी गयी समस्त जानकारी पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी
आपकी दवाएं एक विशेष बॉक्स में रखकर आपके घर तक डिलीवर करायी जाएँगी
बवासीर / भगंदर का इलाज होमियोपैथी पद्धति में जड़ से होता है
इलाज के दौरान आप हमारी क्लिनिक पर भी आकर डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं एवं ऑनलाइन सलाह भी ले सकते हैं
नोट : आप हमारे डॉक्टर से क्लिनिक में आकर भी मिल सकते हैं एवं ऑनलाइन सलाह भी ले सकते हैं
बवासीर को पाइल्स या हेमोर्रोइड्स भी कहा जाता है। ये बेहद तकलीफदेह बीमारी है, इसमें मरीज़ को गुदा यानि ऐनस के अंदर और बाहर तथा मलाशय के निचले हिस्से में सूजन महसूस होती है, इसकी वजह से गुदा के अंदर और बाहर, या एक जगह पर मस्से (हेमोर्रोइड्स ) बन जाते है। मस्से कभी अंदर तो कभी बाहर रहते है। ये समस्या लोगो को उम्र के किसी भी पड़ाव में हो सकती है जिसका समय रहते अगर सही इलाज न कराया जाए तो ये गंभीर रूप ले लेती है।
बवासीर होने का मुख्य कारण पेट की गड़बड़ी (कब्ज) को माना जाता है, इसके अलावा व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी का भी प्रभाव रहता है जैसे - घंटो खड़े रहना, भारी वजन उठाना, तला एवं मिर्च मसाले युक्त भोजन करना, धूम्रपान या शारीरिक गतिविधि कम करना एवं तनाव ज्यादा लेना इत्यादि।
इसके अतिरिक्त फाइबर युक्त भोजन न करना, रोजगार जैसे बस कंडक्टर, ट्रैफिक पुलिस इत्यादि में भी ये समस्याएं अधिक देखने को मिलती है।
ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
खूनी बवासीर- खूनी बवासीर में मरीज़ को किसी प्रकार का दर्द महसूस नहीं होता। मल त्याग के समय खून आता है, गुदा के अंदर मस्से हो जाते है। ये खून मल त्याग के साथ थोड़ा- थोड़ा या पिचकारी के रूप में आने लगता है। मल त्याग के बाद मस्से अपने आप अंदर चले जाते है। गंभीर अवस्था में ये हाथ से दबाने पर भी अंदर नहीं जाते, इस तरह के बवासीर का तुरंत उपचार करना चाहिए।
बादी बवासीर- बादी बवासीर में मरीज़ को पेट की समस्याएं - कब्ज एवं गैस रहती है, इसमें मस्से में खून नहीं आता और मस्से आसानी से बाहर देखे जा सकते है। इसमें मरीज़ को बार बार खुज़ली एवं जलन के साथ दर्द भी महसूस होता है शुरुआती दौर में मरीज़ को तकलीफ का अहसास नहीं होता पर लगातार ख़राब खान पान और कब्ज की समस्या रहने से मस्से फूल जाते है और इनमे खून जमा हो जाता है, सूजन होने पर असहनीय दर्द महसूस होता है।
इसमें मलत्याग के समय , और उसके बाद भी मरीज़ को दर्द बना रहता है, चलने व बैठने में दिक्कत महसूस होती है।
बवासीर यदि शुरुआती दौर में हो तो ये 4 -5 दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन रोग बढ़ने पर ये लक्षण देखे जा सकते है।
बवासीर (पाइल्स) को मुख्यतः चार कैटेगरी में विभाजित किया जाता है
आइये इनके बारे में विस्तार से जानते है।
यह शुरुआती स्टेज होती है जिसमे मरीज़ को लक्षण दिखाई नहीं देते ,कई बार पता भी नहीं चलंता की उसे पाइल्स है , इसमें दर्द नहीं होता है केवल हलकी सी खारिस महसूस होती है और जोर लगाने पर हल्का खून आ जाता है इसमें पाइल्स यानि मस्से अंदर ही होते है
इसमें मल त्याग के वक़्त मस्से बाहर की ओर आने लगते है ,लेकिन हाथ से अंदर करने पर वे अंदर चले जाते है। इसमें दर्द महसूस होता है ,और ज्यादा जोर लगाने पर खून भी आने लगता है।
यह स्थिति थोड़ी गंभीर हो जाती है क्यूंकि इसमें मस्से बहार की ओर ही रहते है हाथ से भी अंदर नहीं होते , मरीज़ को तेज दर्द व मलत्याग के साथ खून भी ज्यादा आता है।
यह अत्यंत गंभीर अवस्था होती है , इसमें मस्से बाहर की ओर लटके रहते है। असहनीय दर्द और खून आने की शिकायत मरीज़ को होती है। ऐसी स्तिथि में इन्फेक्शन होने का खतरा भी बना रहता है।
कई बार लोगो के लिए पाइल्स फिशर और फिस्टुला में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है।
आइये देखते हैं, पाइल्स एंड फिशर में क्या अंतर है, पाइल्स या बवासीर मुख्य रूप से सूजी रक्त वाहिकाएं होती है, इसकी वजह से गुदा के अंदरूनी हिस्से में या बाहर के हिस्से में मस्से जैसे बन जाती है, जिसमे कई बार खून निकलता है दर्द भी होता है जोर लगाने पर मस्से बाहर आ जातें है।
फिशर भी गुदा का ही रोग है, लेकिन इसमें गुदा में क्रैक या दरार हो जाता है, यह क्रैक छोटा या बड़ा भी हो सकता है जिसकी वजह से खून आने लगता है,मरीज़ को मवाद की शिकायत भी रहती है। मलत्याग के वक़्त अधिक प्रेशर लगाना पड़ता है, जिसके कारण मरीज़ को असहनीय पीड़ा होती है।
फिस्टुला या भगन्दर, इसमें गुदा के मध्य भाग में गुदा ग्रंथि होती है, जिनमे संक्रमण हो जाने से गुदा में फोड़ा हो जाता है ,जिससे मवाद निकलने लगता है। संक्षेप में कहे तो , फिस्टुला संक्रमित ग्रंथि को फोड़ा से जोड़ने वाला मार्ग है।
पाइल्स (Piles ) | फिशर (fissure ) | फिस्टुला /भगन्दर (Fistula ) |
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नसों में सूजन रहना |
कट /दरार होना | गुदा ग्रंथि में इन्फेक्शन ,पस /मवाद आना |
अंदरूनी /बाहरी मस्से | खून का आना /न आना | गुदा के पास फुंसी /फोड़ा |
दर्द ,जलन ,चुभन ,खुज़ली | दर्द ,जलन ,चुभन ,खुज़ली | दर्द ,जलन ,चुभन ,खुज़ली |
खून का आना /न आना | पस आना /न आना | Ano- Rectal ट्रैक (ओपनिंग )बन जाती है। |
इन समस्यों को कई प्रकार से ठीक किया जा सकता है, जैसे होमियोपैथी, ऐलोपैथी, आयुर्वेद, घरेलु नुश्खे और सर्जरी इत्यादि। आइये विस्तार से जानते है इन समस्यों के लिए हम किस तरह का इलाज करा सकते है, और ये कहाँ तक कारगर है।
होमियोपैथी (Homeopathy) में पाइल्स का इलाज सबसे अधिक कारगर मन जाता है इसके कई कारण बताए जाते हैं, सबसे पहला इसके कोई साइड इफ़ेक्ट देखने को कभी नहीं मिलते हैं, जहां एलोपैथी या आयुर्वेद कुछ समय के लिए इससे राहत दिलाता है वही होमियोपैथी इसका जड़ से इलाज करने में पूर्णतः सक्षम है, 2 या 3 महीने के इलाज, पोषण युक्त भोजन एवं स्वस्थ दिनचर्या का पालन करके इससे पूर्णतः निजात पाई जा सकती है।
ऐलोपैथी में पाइल्स का इलाज पूर्णतः संभव नहीं है, इन दवाओं के ढेरो साइड इफ़ेक्ट भी देखने को मिलते है, दवाओं के निरंतर प्रयोग से समस्याएं गंभीर रूप ले लेती हैं।
आयुर्वेद में कुछ जड़ी-बूटियों की मदत से इसका इलाज किया जाता है, ये कुछ समय के लिए तो मरीज़ को राहत दिला देता है परन्तु पूर्णतः निजात दिलाने में सक्षम नहीं है।
घरेलु नुश्खे (Home Remedies) - घरेलू नुस्खे पाइल्स के इलाज में सक्षम नहीं है अतः बिना देर किये चिकित्सक से परामर्श करें।
सर्जरी में मस्से की जगह को ऑपरेट कर दिया है जो सफल नहीं होता है,क्यूंकि पाइल्स की समस्या कब्ज की वजह से होती है यदि सर्जरी करा भी ली जाय तो इसके दोबारा होने की आशंका रहती है।
सबसे पहले जानते है, क्या खूब खाएं -
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हरी पत्तेदार सब्जियां |
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सब्जियां |
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छाछ |
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हर्बल चाय |
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ताजे फल |
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जूस |
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पानी |
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सलाद |
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ईसबगोल भूसी |
अब जानते हैं, कि आपको क्या नहीं खाना है।
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मसालेयुक्त भोजन |
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फ्राइड फ़ूड |
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जंक फ़ूड |
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लाल मिर्च |
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व्हाइट ब्रेड |
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दूध |
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कैफीन(चाय /कॉफ़ी) |
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मांस |
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धुम्रपान |
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एलकोहल |
आपको निचे दी गई दिनचर्या का पालन करना है।
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सुबह का नाश्ता ( हल्का भोजन) उचित समय सुबह 7 -8 बजे सुबह 10 बजे के बाद नहीं। |
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दोपहर का भोजन (शर्करा युक्त भोजन) उचित समय दोपहर 12 -2 बजे दोपहर 3 बजे के बाद नहीं।
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रात का भोजन (उच्च कैलोरी युक्त भोजन) उचित समय शाम 6 -8 बजे या सोने से 2 घंटे पहले
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बवासीर से पूर्णतः निजात पाने के लिए आपको लगभग 3 से 4 महीने इलाज करना होता है, इसकी अवधि मर्ज़ की गंभीरता के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकती है। अतः यदि आप हमारे द्वारा दी हुई दवाओं का नियमित सेवन करते है तथा बताए गए डाइट चार्ट व दिनचर्या का पूर्णतः पालन करते है तो आपको जल्द ही इस समस्या से निजात मिल जाती है।
फिशर से पूर्णतः निजात पाने के लिए आपको लगभग 3 से 4 महीने इलाज करना होता है, इसकी अवधि मर्ज़ की गंभीरता के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकती है। अतः यदि आप हमारे द्वारा दी हुई दवाओं का नियमित सेवन करते है तथा बताए गए डाइट चार्ट व दिनचर्या का पूर्णतः पालन करते है तो आपको जल्द ही इस समस्या से निजात मिल जाती है।
फिस्टुला से पूर्णतःनिजात पाने के लिए आपको लगभग 3 से 4 महीने इलाज करना होता है, इसकी अवधि मर्ज़ की गंभीरता के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकती है। अतः यदि आप हमारे द्वारा दी हुई दवाओं का नियमित सेवन करते है तथा बताए गए डाइट चार्ट व दिनचर्या का पूर्णतः पालन करते है तो आपको जल्द ही इस समस्या से निजात मिल जाती है।